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नजरिया: सोशल मीडिया के दुश्चक्र में आधी आबादी, दुर्भाग्य से विस्तार पा रहा है बर्बरता का दायरा

समाज है, तो सोशल मीडिया का होना बहुत स्वाभाविक है। समाज में रहने वाला आदमी चाहे-अनचाहे वर्चुअल दुनिया के जाल में फंसता चला जाता है। समाज की जो सोच है, वही सोच वहां भी है। इसलिए स्त्रियां घर और घर से बाहर जिस तरह प्रताड़ित और लांछित होती है, उसी तरह सोशल मीडिया पर भी अपमानित होती हैं। पर ज्यादातर पुरुषों का नारी विरोध और नारी विद्वेष सोशल मीडिया पर साफ दिखता है। स्त्रियों से मुखातिब होते ही वे उन पर गाली-गलौज और घृणा की बौछार कर देते हैं। ऐसे पुरुषों को यह बखूबी मालूम होता है कि कितना अपमान महिलाओं को मानसिक यातना की हद तक ले जाता है। यह हमारे जीवन का कटु सत्य है। हमें रोज ही इससे गुजरना पड़ता है। सच तो यह है कि सोशल मीडिया में, खासकर फेसबुक और ट्विटर (अब एक्स) पर बेहद गलीज भाषा में मुझ पर हमला बोला जाता है। बीती सदी के आठवें-नवें दशक में मेलों और सांस्कृतिक आयोजनों के अलावा सड़कों पर, दुकान-बाजारों में मुझे निशाना बनाया जाता था। लेकिन यह भी सच है कि तब ज्यादातर निंदक, ईर्ष्यालु और नारी विद्वेषी मुझे छू भी नहीं पाते थे। जबकि अब सोशल मीडिया पर वैसे लोग बेहद सहजता से मुझ पर हमला बोलने में सक्षम हैं, क्योंकि अब मैं उनसे महज एक क्लिक दूर हूं। लिहाजा वे अपनी सारी घृणा, सारी हिंसा, निष्ठुरता और बर्बरता मुझ पर उगल देते हैं। एक्स पर इन गालीबाज नारी विद्वेषियों की टाइम लाइन पर जाने से पता चलता है कि इन सभी लोगों की समाज में भद्र पुरुष की छवि है। ये सभी पारिवारिक व्यक्ति हैं, जिनके घर में मां भी है, पत्नी भी और बेटियां भी। इनमें से ज्यादातर लोग अच्छी नौकरियों में हैं या व्यवसाय करते हैं। धर्म में इन लोगों की जितनी प्रबल आस्था है, उतनी ही आस्था पुरुष वर्चस्ववादी समाज में भी है। इतना ही नहीं, इन तमाम लोगों ने समाज की रीति-नीतियों से अद्भुत सामंजस्य भी बनाकर रखा है। मुझे प्राय: अभद्र भाषा में गाली-गलौज करने के लिए इन्हें समाज में असुविधाजनक सवालों का सामना तो नहीं ही करना पड़ता, उल्टे इनके नारी-विद्वेष को तार्किक और युक्तियुक्त बताया जाता है! मेरी बात अलग है। मैं किशोरी अवस्था से ही नारी विद्वेषी पुरुषों की अश्लीलता की आग में जलकर अंगार बन चुकी हूं, लेकिन समाज की अन्य नारियां तो मेरी तरह नहीं हैं। उनके लिए लगातार सोशल मीडिया पर अश्लीलता के हमले सहन करना सहज नहीं है। अनेक महिलाएं रोजाना की इस अश्लीलता से उबकर सोशल मीडिया छोड़ देती हैं। जो ज्यादा संवेदनशील होती हैं, वे दुनिया भी छोड़ देती हों, तो क्या आश्चर्य! मेरे फेसबुक के इनबॉक्स पर कथित भद्रपुरुषों के लगातार अभद्र और अश्लील संदेश आते रहते हैं। ये लोग मुझे अश्लील तस्वीरें भेजते हैं, साथ में बताते हैं कि मेरे साथ कैसा सुलूक करेंगे। मैं इनमें से किसी को नहीं पहचानती। फिर ये मुझे निशाना क्यों बनाते हैं दरअसल इन लोगों ने पढ़ा या जाना है कि मैं महिलाओं के लिए बराबर का अधिकार चाहती हूं। इन्होंने सुना है कि मैं उदार विचारों में विश्वास करती हूं, तर्कवादी हूं और वैज्ञानिक सोच को महत्व देती हूं, इस कारण ये लोग मुझ पर हमलावर हैं। मुझे लगता था कि कट्टरता की विरोधी और औरतों के अधिकारों के बारे में बात करने के कारण मैं पुरुष समाज के निशाने पर हूं। लेकिन यह जानकर मैं हैरान रह गई कि लगभग हर महिला के फेसबुक के इनबॉक्स पर कमोबेश इसी तरह के गंदे संदेश और अशोभनीय यौन प्रस्ताव आते हैं। यहां तक कि फेसबुक पर नई-नई आईं निष्पाप, निर्दोष और दुनियादारी से अनजान किशोरियां भी इस गंदगी से बची हुई नहीं हैं। इनका क्या गुनाह है इनका दोष संभवत: यह है कि इन्होंने किसी न किसी मुद्दे पर ऐसे विचार व्यक्त किए हों, जो परिवार व्यवस्था, समाज व्यवस्था और धार्मिक व्यवस्था के अनुकूल न हों। या ऐसा भी हो सकता है कि सिर्फ स्त्री होने, स्त्री लिंग होने के कारण वे पुरुषों के निशाने पर हों। आखिर हमारा पुरुषतांत्रिक समाज हमेशा ही स्त्रियों को अपने कब्जे में रखना चाहता है। सच कहूं, तो एक लड़की समाज में जितनी लांछित होती है, सोशल मीडिया पर उससे कहीं ज्यादा प्रताड़ित, अपमानित होती है। इस कारण वह पढ़ाई-लिखाई में, अपने काम-काज में उतना ध्यान नहीं दे पाती। इससे वह मानसिक रूप से टूट जाती है, विक्षिप्त और विध्वस्त हो जाती है। उसका आत्मविश्वास रसातल में चला जाता है। आज हमारी दिनचर्या ऑनलाइन हो गई है। छात्रों की पढ़ाई ऑनलाइन है, काम-काज ऑनलाइन है। सामान ऑनलाइन ही खरीदे जाते हैं, बिल ऑनलाइन चुकाए जाते हैं। खाना ऑनलाइन मंगाया जाता है। इन सबसे कुछ समय बचता है, तो लोग मोबाइल पर कुछ न कुछ करते-देखते पाए जाते हैं। इस ऑनलाइन माध्यम में भी स्त्री अगर घृणा, अपमान, तिरस्कार, हिंसा की पात्र हो, तो फिर इस दुनिया में उसके लिए कोई सुरक्षात्मक जगह या कोई सम्मानजनक भविष्य नहीं है। धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने पर सजा का प्रावधान है, लेकिन इस पृथ्वी के हर कोने में महिलाओं को रोज तरह-तरह से शारीरिक-मानसिक चोट पहुंचाई जाती है, जबकि कम ही लोगों को इसकी सजा मिलती है। उल्टे ज्यादातर समाजों में मर्दवाद का ही बोलबाला है, जहां ऐसे पुरुषों को महत्व मिलता है, जो औरतों को उनकी हद में रखते हैं। यही नहीं, सोशल मीडिया के वर्चस्व के इस दौर में औरतों के खिलाफ हिंसा और बर्बरता का दायरा जिस तरह दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में फैलता जा रहा है, वह तो और भी चौंकाने, डराने वाला है। किसी पुरुष का चेहरा देखकर कोई समझ नहीं सकता कि यह क्रूर है या संवेदनशील। कौन पुरुष हत्या कर सकता है, कौन नहीं कर सकता, इस बारे में किसी का चेहरा देखकर भला कैसे पता किया जा सकता है! साथ रही स्त्री को काटकर टुकड़े-टुकड़े कर फ्रिज और कुकर में रखने के लोमहर्षक विवरण अब आते ही रहते हैं। यह सही है कि सब पुरुष बर्बर नहीं होते। लेकिन ज्यादातर पुरुष बर्बर आचरण करने की क्षमता रखते हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन दुनिया को मानवता के विकास के पैमाने के रूप में देखा और आंका जा रहा है। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि यहां भी स्त्रियों के हिस्से में घृणा, अपमान और हिंसा ही है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 28, 2023, 07:40 IST
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